Ajay mohan semwal , Dehradun
सूचना के अधिकार कानून को लागू हुए 02 दशक गुजर चुके हैं, लेकिन कई शिक्षण संस्थान अब भी पारदर्शिता से कतराते नजर आते हैं। इसका ताज़ा उदाहरण राजधानी के डीबीएस पीजी कॉलेज में देखने को मिला, जहां कॉलेज प्रशासन ने वर्ष 2022-23 के अंतर्गत छात्रों के दाखिले, छात्र संघ कोष और छात्र संघ पदाधिकारियों से जुड़ी जानकारी को “निजी सूचना” बताकर आवेदक को देने से मना कर दिया।मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने कॉलेज के तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी पर 25 हजार रुपये का अधिकतम दंड और प्रबंध समिति के सचिव पर 25 हजार रुपये की क्षतिपूर्ति देने का आदेश सुनाया।
सुबोध सेमवाल की आरटीआई से खुला मामला
चक जोगीवाला (छिद्दरवाला) निवासी सुबोध सेमवाल ने दाखिले और छात्र संघ कोष से संबंधित सूचनाएँ मांगी थीं।
सूचना न देने पर उन्होंने आयोग की शरण ली।
सुनवाई के दौरान सुबोध सेमवाल ने बताया कि छात्र संघ कोष में दखल को लेकर उन पर आरोप लगाए गए थे, उन्हें सोशल मीडिया पर बदनाम किया गया और धमकियाँ तक मिलीं। खुद को निर्दोष साबित करने के लिए यह जानकारी उनके लिए आवश्यक थी, इसलिए उन्होंने इसे “जीवन और स्वतंत्रता से जुड़ी सूचना” बताते हुए 48 घंटे के भीतर उपलब्ध कराने की मांग की थी।
कालेज प्रशासन की दोहरी लापरवाही, आयोग सख्त
सूचना आयुक्त ने पाया कि लोक सूचना अधिकारी ने नियमविरुद्ध सूचना रोक दी। विभागीय अपीलीय अधिकारी (प्रबंध समिति के सचिव) ने प्रथम अपील का निस्तारण तक नहीं किया और आयोग द्वारा भेजे गए नोटिस की भी अनदेखी की गई।अपीलीय अधिकारी बदलने का निर्देश
आयुक्त योगेश भट्ट ने आदेश की प्रति उच्च शिक्षा सचिव को भेजते हुए सुझाव दिया कि कॉलेजों में विभागीय अपीलीय अधिकारी के रूप में प्रबंध समिति के सचिव के स्थान पर उच्च शिक्षा निदेशालय या शासन स्तर के अधिकारी को नामित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजकीय महाविद्यालयों में यह व्यवस्था पहले से लागू है और स्वायतशासी संस्थानों में भी ऐसी व्यवस्था पारदर्शिता को बढ़ाएगी।