गढ़वाल विश्वविद्यालय के उच्च हिमालयी पादप शोध संस्थान ने लैंटाना का कारगर उपयोग खोज निकाला

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श्रीनगर, 25 अगस्त। जंगल की जैव विविधता और खेती के लिए अभिशाप बने लैंटाना (लैंटाना कैमरा) निकट भविष्य में खेती के लिए वरदान साबित हो सकता है। गढ़वाल विश्वविद्यालय के उच्च हिमालयी पादप शोध संस्थान ने लैंटाना का कारगर उपयोग खोज निकाला है। हैप्रेक के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि लैंटाना के पत्तों के तेल से कीटनाशक तैयार किया जा सकता है। अगर इसका उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जाए तो इससे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।

लॅन्टाना मध्य और दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाली एक घनी शाखाओं वाली झाड़ी है जो सघन गुच्छों, घने झाड़ियों और रेंगने वाली और चढ़ने वाली लताओं के रूप में विकसित हो सकता है। यह देशी वनस्पतियों को दबा सकता है और अभेद्य स्टैंड बना सकता है। उत्तराखंड के पहाड़ों पर पैर पसार चुकी इस घास से लोग परेशान हैं।

हैप्रेक के शोधकर्ताओं का कहना है कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लैंटाना (लैंटाना कैमरा) तेजी से फैल रहा है। लैंटाना लगभग 24 प्रतिशत वन क्षेत्र में फैल चुका है। इसके चलते लैंटाना वन क्षेत्र की जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रहा है। हैप्रेक के शोधार्थी डॉ. जयदेव चौहान ने बताया कि लैंटाना पर शोध के दौरान पता चला है कि इसके पत्तों से निकलने वाला तेल फसल में कीटनाशक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

लघु उद्योग के रूप में शुरू हो सकता है काम
लैंटानाका तेल निकालने के लिए ग्रामीण ऑयल कलेक्शन यूनिट स्थापित कर सकते हैं। इससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। पत्तों का तेल निकालने से पहले उन्हें दो घंटे तक सुखाना होता है, जिसके बाद तेल निकाला जा सकता है.हालांकि तेल की मात्रा कम होती है, लेकिन यदि पत्तों की अधिक मात्रा उपलब्ध हो, तो तेल की मात्रा भी बढ़ाई जा सकती है।

ऐसे लाएं उपयोग में
लैंटानाके एक मिलीलीटर तेल को 20 लीटर पानी में घोलकर इसका छिड़काव किया जा सकता है। इस घोल का उपयोग फसल, अमरूद, अनार और अन्य फलदार पौधों पर भी किया जा सकता है, जिससे फलों में कीड़े नहीं लगेंगे।

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