कारगिल युद्ध भारतीय सेना के पराक्रम और शौर्य की अमिट गाथा है। 23 वर्ष पूर्व 26 जुलाई 1999 को भारतीय सैनिकों ने अपने अदम्य साहस एवं पराक्रम से पाकिस्तानी सेना को घूटनो के बल ला दिया था। कारगिल का यह युद्ध कई मायनों में अलग था, क्योंकि हमारे सैनिकों ने जिन विषम परिस्थितियों में दुश्मनों का मुकाबला किया वो अकथनीय है। दुर्गम पहाड़ों में बिना भोजन-पानी के सप्ताह – सप्ताह भर डटे रहना, समान्य सी बात नहीं थी। हमारे जवानों पर एक तरफ दुश्मन गोले बरसा रहे थे तो दूसरी तरफ प्रकृति भी…उनके धैर्य की परीक्षा लेने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। चोटी पर दुश्मन और सैनिकों के सामने पर्वत की खड़ी चुनौती। चहुंओर बर्फ ही बर्फ। खाने-पीने की सामग्री का अकाल…इन सब पर हमारी सेना ने हार नहीं मानी और असंभव को संभव कर दुनिया को चकित कर दिया। इस युद्ध को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ चलाकर जीता था। पीठ पीछे पाकिस्तान की ओर से वार किए जाने के बाद भी भारतीय जवानों का साहस हिमालय से भी ऊंचा था। भारतीय सेना के अदम्य शौर्य ने बड़ी विजय दिलाई थी। कारगिल की ऊंची चोटियों को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त करवाते हुए वीरगति प्राप्त होने वाले देश के अमर बलिदानियों की याद में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है
लेह लद्दाख की भारतीय सीमा को राज्य के उत्तरी इलाकों से अलग करने के उद्देश्य की गई इस घुसपैठ ने भारतीय सेना को चौंका दिया था। यह घुसपैठ उस समय हुई जब भारत – पाकिस्तान के बीच चल रही तनातनी को कम करने के उद्देश्य से दोनों देशों ने फरवरी, 1999 में लाहौर घोषणापत्र में हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के अनुसार दोनों देशों ने कश्मीर मुद्दों पर आपसी बातचीत से सुलझाने की सहमति बनाई लेकिन पाकिस्तान ने अपने नापाक इरादों को नहीं छोंडा और अपने सैनिकों को चोरी-छिपे नियंत्रण रेखा पार कर भारत भेजना शुरू कर दिया। इसे पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन बंद्र’ नाम दिया। इसके पीछे उसकी मंशा राष्ट्रीय राजमार्ग – 1 की आपूर्ति (सप्लाई) को बंद करवाना था, चूंकि यह राजमार्ग/हाईवे श्रीनगर को लेह से जोड़ता है। उन्हें लगता था कि ऐसा करने पर कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़कर भारतीय सेना को वे सियाचीन ग्लेशियर से हटाने में सफल हो जाएंगे साथ ही आपूर्ति(सप्लाई) बंद होने से भारतीय सेना त्वरित जवाबी कार्रवाई नहीं कर पाएगी। इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है कि कारगिल हमले का वृहद् पक्ष, एक दूसरा पहलू भी था, जो कि राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर से जुड़ा हुआ था जिसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया क्योंकि कारगिल हमले के बाद भारतीय सेना इतना मुहतोड़ जवाब देगी इसकी कल्पना पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को नहीं थी। इस वृहद् पक्ष के अनुसार अफगानिस्तान में तालिबान प्रमुख मुल्ला महसूद रब्बानी से कश्मीर में जेहाद लड़ने के लिए पाकिस्तान ने 20 से 30 हजार लड़ाको की मांग की थी। रब्बानी ने 50 हजार लड़ाकों का वायदा कर दिया था। पाकिस्तानी सेना के अधिकारी इस प्रस्ताव से बेहद खुश थे। बताया जाता है कि कारगिल को लेकर परवेज़ मुशर्रफ़ बेचैन था। 1965 के युद्ध से पहले कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी सेना थी, सुरक्षा और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण जगह पर थी, लेकिन 1965 और 1971 के युद्ध में भारत ने यह महत्वपूर्ण चोटियां अपने कब्ज़े में ले ली थी। मुशर्रफ हर हाल में चोटियों को वापिस लेना चाहता था।
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